"गाँव से शहर की यात्रा"
एक छोटे से गाँव में एक लड़का था जिसका नाम था मोहन। मोहन मेहनती और सपने देखने वाला था। वह हमेशा सोचता था कि एक दिन वह शहर जाकर कुछ बड़ा करेगा। गाँव में रहते हुए, उसने सुना था कि शहर में जीवन की रौनक, रोशनी और नए अनुभव होते हैं।
एक दिन, मोहन ने ठान लिया कि वह शहर जाएगा। उसने अपने माता-पिता से अपनी इच्छा बताई। वे थोड़े चिंतित थे, लेकिन अंत में मोहन की जिद और सपनों को देखते हुए उन्होंने उसे जाने की अनुमति दी।
शहर पहुँचते ही मोहन की आँखें चमक उठीं। ऊँची इमारतें, तेज़ गाड़ियाँ, और चारों ओर भागदौड़। उसने सोचा कि यह तो एक नई दुनिया है। लेकिन जल्दी ही उसे पता चला कि शहर की ज़िंदगी इतनी आसान नहीं है।
मोहन ने एक छोटी सी दुकान में काम करना शुरू किया। वहाँ उसने बहुत कुछ सीखा—कड़ी मेहनत, जिम्मेदारी, और दोस्ती। लेकिन उसे अपने गाँव की याद आने लगी। उसके मन में गाँव के सुंदर खेत, हँसते-मुस्कुराते लोग और अपनों का प्यार बसता था।
एक दिन, काम करते हुए, मोहन ने देखा कि एक बच्चा उस दुकान के बाहर खड़ा है, उसे देखकर उसकी यादें ताजा हो गईं। उसने सोचा कि वह भी कभी अपने गाँव में ऐसे ही खुश था।
मोहन ने निर्णय लिया कि वह अपने गाँव लौटेगा। वह जानता था कि गाँव में उसकी जड़ें हैं, और असली खुशी वहीं है।
जब मोहन गाँव वापस लौटा, तो उसके माता-पिता और दोस्त उसे देखकर बहुत खुश हुए। उसने अपने अनुभव साझा किए और गाँव में नई चीज़ें लाने का सोचने लगा। उसने वहाँ एक छोटी सी दुकान खोली, जहाँ शहर की चीज़ें गाँव वालों को उपलब्ध करवाईं।
मोहन ने सीखा कि जीवन के सफर में हम कहीं भी जाएँ, अपने घर की पहचान और प्यार हमेशा हमारे साथ रहता है। गाँव की मिट्टी में उसकी खुशियाँ बसी थीं, और वह फिर से वहीं अपने सपनों को पूरा करने लगा।
इस तरह, मोहन ने साबित किया कि गाँव की सादगी और प्यार कभी नहीं भुलाए जा सकते।